करवा चौथ 2024 की तिथि और समय-सारणी
विवाह बंधन को सम्मान देने वाला यह उत्सव 2024 में रविवार, 20 अक्टूबर को निर्धारित हुआ है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह करवा चौथ 2024 कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है, जो कार्तिक महीने (पुर्णिमांता) में पड़ता है। यदि आप अमांता कैलेंडर (ज्यादातर गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में प्रयुक्त) देखते हैं, तो यह अश्विन महीने में गिना जाता है, पर तिथि एक समान रहती है।
ड्रिक पंचांग के अनुसार प्रमुख समयांक इस प्रकार हैं:
- चतुर्थी तिथि का प्रारम्भ: 6:46 सुबह (20 अक्टूबर)
- चतुर्थी तिथि का समाप्ति: 4:16 सुबह (21 अक्टूबर)
- व्रत का आरम्भ: 6:25 सुबह (सूर्योदय के साथ)
- व्रत समाप्ति (चाँद देखे समय): 7:54 शाम
- करवा चौथ पूजा का मुहूर्त: 5:46 शाम से 7:02 शाम
व्रत करने वाली महिलाएँ इस अवधि में न केवल भोजन, बल्कि जल का भी सेवन नहीं करतीं। आम तौर पर व्रत 11‑12 घंटे तक चलता है, जिसके बाद वह चाँद की रोशनी में अपनी शक्ति को पुनः प्राप्त करती हैं।

इतिहास, महत्व और रीति‑रिवाज
करवा चौथ केवल एक सामाजिक समारोह नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरी पौराणिक कहानियां छिपी हैं। महाभारत में दो प्रमुख कथाएँ इस त्यौहार की जड़ें बनाती हैं। पहली कथा में सविता की है, जो अपने पति सत्यव्रत को मृत्यु के दंड से बचाने हेतु यमराज से मिलकर उसकी जान बचाती हैं। दूसरी कथा में पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी का उल्लेख है, जहाँ उन्होंने भगवान कृष्ण से मदद माँगी जब अर्जुन गुप्त साधना में नहीं लौट पा रहे थे। इन कहानियों ने वैवाहिक विश्वास और पुरुष‑महिला के बीच के बंधन को पवित्र बनाया।
‘करवा’ शब्द का अर्थ मिट्टी का पात्र है, जिसमें जल (अर्घ) को चाँद को अर्पित किया जाता है। यह प्रतीकात्मक रूप से महिलाओं के अपने पति के लिए किए गए समर्पण को दर्शाता है। व्रत के दौरान महिलाएँ लाल, गुलाबी या गाढ़े रंग के परिधान पहनती हैं, बेज़ पर थाली सजाती हैं, जिसमें दीये, मिठाई, सूप, अर्घ के साथ करवा रखता है। व्रत के अंत में चाँद को देखते ही वे उस अर्घ को चाँद की ओर उठाकर ‘छू’ते हैं और फिर अपने पति के हाथ में रखकर उसे खाने के लिये देते हैं, मानो दीर्घायु का आशीर्वाद परिधान में बाँध रहे हों।
देश के विभिन्न हिस्सों में रिवाज़ थोड़े‑बहुत बदलते हैं। उत्तर भारत में यह लगभग हर साल बड़े गैलन में मनाया जाता है, जबकि कुछ दक्षिणी राज्यों में इस दिन को ‘तुंगेट’ कहा जाता है और विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में, महिलाएँ पूरे परिवार के स्वास्थ्य के लिये भी प्रार्थना करती हैं, न केवल पति की।
आधुनिक समय में भी करवा चौथ की महत्ता कम नहीं हुई। कई युवा महिलाएँ अब स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर व्रत को हल्का बनाती हैं—उदाहरण के लिये सुबह हल्का फल खा लेती हैं, फिर शाम को पूर्ण व्रत रखती हैं। सामाजिक मंचों, समूहों और ऑनलाइन बर्थेडर्स के ज़रिए भी यह त्यौहार नई रूप‑रेखा ले रहा है; कई शॉपिंग मॉल और रेस्तरां इस दिन विशेष मेन्यू और सजावट के साथ ग्राहकों को आकर्षित करते हैं। साथ ही, इस दिन को ‘संकष्ठी चतुर्थी’ भी कहा जाता है, जो भगवान गणेश को समर्पित है, इसलिए कई घरों में दोनों पूजा का आयोजन एक साथ किया जाता है।
करवा चौथ का संदेश आज भी वैवाहिक प्रेम, त्याग और प्रतिबद्धता को उजागर करता है। यह न केवल पति‑पत्नी के बीच के बंधन को सुदृढ़ करता है, बल्कि महिलाओं को एक साथ मिलकर अपनी कहानियों, अनुभवों और सपनों को साझा करने के लिये एक मंच भी प्रदान करता है। इस प्रकार, यह त्यौहार परम्परा और आधुनिकता के संगम का प्रतीक बन गया है, जहाँ पुरानी रीति‑रिवाजन को नयी सोच के साथ जीवित रखा जा रहा है।