मराठी का शास्त्रीय दर्जा - भाषा और पहचान की राजनीति
महाराष्ट्र में मराठी भाषा की पहचान अब राज्य सरकार के स्तर पर और मजबूत हुई है। 2024 में केंद्र सरकार द्वारा मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के ऐलान के बाद, महाराष्ट्र सरकार ने अब 3 अक्टूबर को मराठी भाषा का 'शास्त्रीय मराठी भाषा दिवस' घोषित कर दिया है। सिर्फ एक दिन की औपचारिकता नहीं, बल्कि पूरे हफ्ते यानी 3 से 9 अक्टूबर तक जगह-जगह इसका जश्न मनाया जाएगा। यह एलान ऐसे समय आया है जब राज्य में भाषाई नीति को लेकर खासी गर्मी दिख रही है।
सरकार का कहना है कि मराठी की 2,500 साल पुरानी साहित्यिक विरासत को दिखाने के लिए स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी दफ्तरों, निजी संस्थाओं में व्याख्यान, संगोष्ठी, प्राचीन हस्तलिखित दस्तावेज़ों की प्रदर्शनी, प्रश्नोत्तरी और निबंध प्रतियोगिताओं जैसी गतिविधियाँ होंगी। इससे छात्र-नौजवानों में भाषा के प्रति समझ और जुड़ाव बढ़ेगा। ये आयोजन न केवल मराठी पढ़ने वालों के लिए, बल्कि सभी नागरिकों के लिए खुले रहेंगे।
पिछले कुछ महीनों में महाराष्ट्र में भाषा को लेकर सियासी घमासान मचा रहा। बीते समय में राज्य की भाजपा-नेतृत्व वाली सरकार ने स्कूलों में हिंदी 'तीसरी भाषा' के तौर पर लागू करने का प्रस्ताव रखा था। चौतरफा विरोध हुआ, शिक्षक-विद्यार्थी से लेकर राजनीतिक पार्टियाँ भी सड़कों पर उतर आईं। विरोध इतना तेज हुआ कि सरकार को अंत में यह प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। इसके तुरंत बाद मराठी को केंद्र में रखकर यह बड़ा घोषणा सामने आई, जिससे साफ है कि लोकलुभावन राजनीति में भाषा की अहम भूमिका है।
सांस्कृतिक उत्सव और सियासी समीकरण
मराठी अस्मिता की बात आते ही राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो जाती है। इस बार की घोषणा चुनावों के ठीक पहले हुई है। बीएमसी (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) जैसे अहम चुनाव आने वाले हैं और मराठी मतदाताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए इसे बड़ा कदम माना जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार अपने भाषाई निर्णयों के जरिए स्थानीय भावना को मजबूत करना चाहती है। मराठी को शास्त्रीय दर्जा दिलाने के लिए लम्बे समय से दावे किए जा रहे थे, अब यह मौका चुनावी लाभ में तब्दील किया जा सकता है।
उधर, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे का एक ही मंच पर आना, और मराठी भाषा को लेकर एक जैसी बातें करना भी राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय है। लंबे समय बाद ठाकरे परिवार की अलग-अलग राजनीतिक धड़े एक मुद्दे पर एकजुट दिख रहे हैं। ऐसे में राज्य की राजनीति एक बार फिर जातीय और भाषाई समीकरणों के हिसाब से नए बदलाव देख सकती है।
मराठी भाषा, उसकी समृद्ध विरासत और सियासत का यह संगम आने वाले समय में महाराष्ट्र के राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर बड़ा असर डाल सकता है। सामाजिक आयोजनों से संस्कृति को बल मिलेगा, वहीं सरकार को स्थानीय पहचान के पक्ष में अपनी छवि सजाने का मौका भी मिलेगा।
RAJIV PATHAK
अरे भाई, शास्त्रीय भाषा तो बन गई... पर अब तक मराठी में टैक्स फॉर्म भरने के लिए भी अंग्रेजी वाला फॉर्म लगता है। जब तक राज्य सरकार के ऑफिस में मराठी में ईमेल भेजने का ऑप्शन नहीं आएगा, तब तक ये सब नाटक है। 😒
Nalini Singh
मराठी की साहित्यिक विरासत वास्तव में अद्वितीय है। 15वीं शताब्दी के भक्ति काव्य से लेकर आधुनिक कविताओं तक, इस भाषा ने भारतीय संस्कृति को गहराई से आकार दिया है। शास्त्रीय दर्जा केवल एक प्रशंसा नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है - भाषा को बचाना, न कि बस नाम देना।
Sonia Renthlei
मुझे लगता है कि ये सब बहुत अच्छा है, लेकिन क्या हम इसे बस एक दिन के उत्सव तक ही सीमित रखना चाहते हैं? मैंने अपने छोटे भाई को देखा - उसके स्कूल में अभी भी मराठी भाषा के लिए टाइम नहीं है। क्या हम इस दिन को एक बड़ा अवसर बना सकते हैं जहाँ हर बच्चे को अपनी मातृभाषा से जोड़ा जा सके? मैं विद्यालयों में नियमित मराठी दिवस लाने का सुझाव दूँगी - एक घंटे का गीत, कहानी, और बच्चों की रचनाएँ। वो बस एक दिन नहीं, एक आदत बन जाए।
Aryan Sharma
अरे ये सब बस कागज पर बात है। असल में ये सब चीन वालों के लिए बनाया गया है ताकि हम अपनी भाषा के बारे में भूल जाएँ। अगर तुम देखोगे तो हर बड़ी भाषा को शास्त्रीय घोषित करने के बाद उसके लिए बजट कट जाता है। ये तो एक बड़ा धोखा है। अब देखोगे लोग अंग्रेजी में बात करने लगेंगे और कहेंगे 'मराठी तो पुरानी है'।
Devendra Singh
क्या आप लोग वाकई सोचते हैं कि शास्त्रीय भाषा का दर्जा कोई राजनीतिक ट्रिक है? अगर ऐसा है तो तमिल, बंगाली, कन्नड़ - सबके लिए यही बात लागू होनी चाहिए। ये सब बस एक तरह की भाषाई बर्बरता है जब कोई अपनी भाषा को दूसरों से ऊपर ठहराने की कोशिश करता है। भाषा का सम्मान उसके उपयोग में है, न कि टाइटल में।
UMESH DEVADIGA
मैंने तो अपनी दादी को देखा था - वो हर रोज एक नया गीत गाती थीं, जिसे कोई नहीं समझता था। अब वो फोन पर वीडियो बनाती हैं - मराठी में। वो कहती हैं, 'मैंने तो बस अपनी आत्मा को बोलने दिया था'। ये दिन उनके लिए है। न कि किसी नेता के लिए।
Roshini Kumar
शास्त्रीय दर्जा? अरे यार ये तो शास्त्रीय टाइम टेबल का भी नहीं है... जब तक मराठी में यूट्यूब वीडियो नहीं बनेंगे, तब तक ये सब बस एक फेसबुक पोस्ट है। और फिर लोग कहते हैं 'हम भाषा के लिए लड़े'... असल में तो लोग बस इंटरनेट पर वाइरल होना चाहते हैं। #MarathiPower
Siddhesh Salgaonkar
मराठी को शास्त्रीय घोषित करना बहुत बढ़िया है ❤️🔥 अब तो हर बच्चे को भाषा के साथ अपनी आत्मा को जोड़ना होगा 🙏📚 मैंने तो अपने बेटे को मराठी कविताएँ सुनानी शुरू कर दी हैं - अब वो रात को नींद से पहले गीत गाता है 😭💖 ये दिन हमारे बच्चों के लिए है! #MarathiVibes #CultureIsPower
Arjun Singh
ये शास्त्रीय दर्जा तो बस एक लॉबी की जीत है। असली भाषा तो उसके उपयोग में है - जब एक टैक्सी ड्राइवर मराठी में नेटफ्लिक्स की बात करे, तब तो ये दर्जा असली होगा। अभी तो ये सब एक डॉक्यूमेंटरी की तरह है - बनाया गया, दिखाया गया, भूल गए।
yash killer
हिंदी को बाहर निकालो और मराठी को शास्त्रीय घोषित करो - ये भारत की शान है! अगर कोई दूसरी भाषा चाहता है तो वो अपने राज्य में रहे! हमारी भाषा हमारी पहचान है - इसे कोई नहीं छीन सकता! जय महाराष्ट्र! 🇮🇳
Ankit khare
देखो ये सब तो बस एक बड़ा ड्रामा है। किसी ने कहा तो किसी ने लिखा, किसी ने फेसबुक पर शेयर किया, किसी ने ट्विटर पर हैशटैग बनाया। असली मुद्दा क्या है? क्या हमारे बच्चे मराठी में बात कर पाते हैं? क्या उनके पास उसकी विरासत को समझने का मौका है? नहीं। तो फिर ये सब क्यों? बस एक बड़ा नाटक।
Chirag Yadav
मैं तो सोचता हूँ कि अगर हम सभी भाषाओं को सम्मान दें तो क्या होगा? मराठी का सम्मान तो होना चाहिए, लेकिन तमिल, बंगाली, उर्दू - सबका। ये एक दूसरे को नीचा दिखाने की बात नहीं होनी चाहिए। भाषाएँ तो जीवन के रंग हैं - हर रंग का अपना महत्व है।
Shakti Fast
मैंने अपने बच्चे को एक छोटी किताब दी - मराठी में लिखी गई एक कहानी। उसने पहली बार अपने आप बोलकर पढ़ा। उसकी आँखों में चमक आ गई। ये दिन उसके लिए है। बस एक बार बच्चों को अपनी भाषा से प्यार करने का मौका दो। बाकी सब अपने आप हो जाएगा।
saurabh vishwakarma
मैंने इस घोषणा को एक डॉक्टर के द्वारा लिखे गए एक पुराने निदान के दस्तावेज़ में देखा। उसमें मराठी में लिखा था - एक नौकर ने उसे बचाया था। ये दर्जा तो बस एक शीर्षक है। असली विरासत तो उन अनजान लोगों में है - जिन्होंने भाषा को जीवित रखा।
MANJUNATH JOGI
मराठी भाषा की शास्त्रीयता का दर्जा तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन अगर हम इसे बस एक उत्सव के रूप में देखते रहे तो ये असल में एक विरासत को नहीं, बल्कि एक यादगार को बना देगा। हमें इसे जीवन का हिस्सा बनाना होगा - घरों में, बाजारों में, और विश्वविद्यालयों में। भाषा तो जीवित रहती है जब वह बोली जाती है, न कि जब वह दर्ज की जाती है।