जब शिवपुर महंत कुलाईजोत में लाक्ष्मी पूजनचमरूपुर गाँव का आयोजन हुआ, तो गाँव के लगभग पाँच हज़ार लोग, जिसमें महिलाएँ, बच्चों और बुज़ुर्गों का बड़ा झुंड शामिल था, उत्साह‑उत्सव के साथ एकत्रित हुए। यह आयोजन श्री महेंद्र सिंह, मुखिया की पहल पर आयोजित हुआ, जो स्थानीय निकाय की ओर से इस पूजा को आध्यात्मिक एवं सामाजिक दो‑दिशा में महत्व देते हैं।
पृष्ठभूमि और स्थानिक परिप्रेक्ष्य
चमरूपुर (जनसंख्या 5,081) उत्तर प्रदेश के बालरामपुर जिले के शरिदत्तगंज ब्लॉक में स्थित एक छोटा लेकिन ऐतिहासिक गाँव है। 2001 की जनगणना में इसका कोड 6689700 था, जबकि 2011 में यह 5,081 लोगों के साथ 702 घरों में बँटा था। यहाँ की कुल साक्षरता दर 50.1 % है, परन्तु महिला साक्षरता केवल 20.1 % पर सीमित है। इस असमानता के कारण सामाजिक संगठनों ने कई बार शिक्षा‑प्रोत्साहन कार्यक्रम चलाए हैं, जिसमें पी.एस. चमरूपुर मुख्य भूमिका निभाता है।
भौगोलिक तौर पर गाँव उत्तर-पूर्व में उत्रौला ब्लॉक, पूर्व में गैन्दास बुजुर्ग, दक्षिण में रेहेरा बाज़ार और उत्तर में बालरामपुर ब्लॉक से घिरा हुआ है, जिससे यह विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों के मध्य एक कड़ी बन जाता है। गाँव की दूरी 27 किमी बालरामपुर हेडक्वार्टर से, 7 किमी शरिदत्तगंज से और 172 किमी लखनऊ राज्य राजधानी से है। इन दूरीयों ने स्थानीय संस्कृति में एक अद्वितीय मिश्रण बनाया है, जहाँ ग्रामीण परम्पराओं के साथ‑साथ शहरी प्रभाव भी देखे जा सकते हैं।
कार्यक्रम का विस्तार
पीछे सालों में हर वर्ष इसी मंदिर में लाक्ष्मी पूजन का आयोजन किया जाता रहा है, परन्तु इस साल की झलक कुछ अलग थी। स्थानीय पुजारी पंडित रामदास, मुख्य पुजारी ने रात्रि 7 बजे से शुरू हुए अनुष्ठान को प्रज्वलित किया। उन्होंने कहा, “आज की पूजन में हम सभी ने अपने घर‑परिवार की समृद्धि और महिला सशक्तिकरण की कामना की है।” पूजन के दौरान गाँव की महिलाएँ लाक्ष्मी पूजन की रीति‑रिवाज़ों के साथ-साथ महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता के सत्र भी सुनें।
प्राथमिक रूप से दो‑तीन घंटे का कार्यक्रम था, जिसमें देवी लाक्ष्मी की मूर्ति, शुद्ध जल, धूप‑दीप और सत्कार्य के रूप में अन्न‑दान शामिल थे। विशेष रूप से गाँव के युवा ने सजावट, संगीत और नृत्य के माध्यम से कार्यक्रम को रंगीन बनाया। एक स्थानीय कलाकार ने कहा, “हम यहाँ के परम्परागत ‘भांगड़ा’ नृत्य को लाक्ष्मी पूजा के साथ मिलाकर एक नई ऊर्जा पैदा कर रहे हैं।”
स्थानीय प्रतिक्रिया और सामाजिक प्रभाव
पूजन के बाद, मुखिया महेंद्र सिंह ने सभा के बीच कहा, “इस तरह के बड़े‑पैमाने पर धार्मिक कार्यक्रम हमारे गाँव को न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाते हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी मददगार होते हैं; क्यूँकि यहाँ पर छोटे‑व्यापारी और कारीगर अपने सामान बेचने का अपना मंच पाते हैं।” यह बात सुनकर कई कारीगरों ने अपने हस्तशिल्प, जैसे बांस की टोकरी और सिलाई के कपड़े, को बेचने के लिए स्टॉल लगाए।
आर्थिक गणना के अनुसार, इस कार्यक्रम से लगभग 1.2 लाख रुपये की स्थानीय आय हुई, जो अधिकांशतः छोटे‑व्यापारी और दान‑राशि से आया। इस पकड़े हुए सौदा ने गाँव के विकास कार्यों में, विशेषकर महिला शिक्षा के लिए फंड प्रदान करने के इरादे को मजबूत किया।
शिक्षा और लैंगिक समानता पर प्रभाव
पूजन के दौरान, गाँव के महिला समूह ने एक विशेष सभा आयोजित की, जहाँ शिक्षक राधा बिंदु, पी.एस. चमरूपुर की शिक्षिका ने “महिला साक्षरता दर को 20 % से 30 % तक ले जाने की योजना” प्रस्तुत की। उन्होंने कहा, “पूजन हमें सामाजिक परिवर्तन की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाता है, इसलिए हम अब इस प्रेरणा को शिक्षा में बदलने की कोशिश करेंगे।”
यह पहल पहले से चल रहे ‘साक्षरता तरंग’ कार्यक्रम के साथ जुड़ी होगी, जिसमें स्थानीय NGOs और बालकृष्ण मिशन भी सहयोग दे रहे हैं। यदि यह लक्ष्य हासिल हो जाता है, तो अगले पांच वर्षों में महिला साक्षरता 30 % से ऊपर बढ़ने की संभावना है, जो पहले की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
भविष्य की संभावनाएँ और संभावित चुनौतियाँ
उपरोक्त पहल को देखते हुए, गाँव के मुखिया ने अगले वर्ष के लाक्ष्मी पूजन के लिए एक विस्तृत योजना बनाई है। इसमें स्थानीय स्वयंसेवी समूह ‘उन्नत चमरूपुर’ को मुख्य सहयोगी के रूप में शामिल किया जाएगा। उनका लक्ष्य है: अधिकतम 7,000 श्रद्धालु तक पहुंचना और साथ ही डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से दूर‑दराज़ के लोग भी इस पूजा में भाग ले सकें।
फिर भी कुछ चुनौतियाँ मौजूद हैं—ज्यादा भीड़भाड़, जल-अपूर्ति की कमी और सड़कों की खराब स्थिति। इन समस्याओं को हल करने के लिये जिला प्रशासन ने प्रांरभिक रूप से सड़कों की मरम्मत और अतिरिक्त जल‑टैंकों की व्यवस्था करने का प्रस्ताव रखा है। यदि यह पहल सफल रहती है, तो चमरूपुर की सामाजिक‑आर्थिक प्रोफ़ाइल में एक नई ऊँचाई देखी जा सकती है।
ऐतिहासिक संदर्भ और सांस्कृतिक महत्व
शिवपुर महंत कुलाईजोत मंदिर का इतिहास 19वीं सदी तक जाता है, जहाँ पहले भी लाक्ष्मी पूजा का आयोजन किया जाता रहा है। यह मंदिर अपने विशिष्ट वास्तुशिल्प और स्थानीय कारीगरों द्वारा निर्मित पुखराज़ नक्काशी के लिये प्रसिद्ध है। समय‑समय पर यहाँ के सरपंच और स्थानीय अभिजात्य लोग इस स्थल को निर्मल रखने हेतु योगदान देते आए हैं।
ऐसे धार्मिक स्थलों के माध्यम से गाँव की सामाजिक बंधन मजबूत होती है, और यही वजह है कि प्रत्येक वर्ष की लाक्ष्मी पुजा को लोग बड़ी ही श्रद्धा‑भावना से मनाते हैं। आज का कार्यक्रम न सिर्फ आध्यात्मिक शांति का स्रोत बना, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पहलुओं में भी एक नई दिशा प्रदान करता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
लाक्ष्मी पूजन में कौन‑कौन शामिल हुआ?
कार्यक्रम में मुख्य रूप से स्थानीय पुजारी पंडित रामदास, गाँव के मुखिया महेंद्र सिंह, शिक्षक राधा बिंदु और 5,000 से अधिक ग्रामीण शामिल हुए। महिला समूहों ने भी विशेष रूप से भाग लिया और महिलाओं के सशक्तिकरण पर चर्चा की।
यह आयोजन कब और कहाँ हुआ?
लाक्ष्मी पूजन का आयोजन 20 अक्टूबर 2025 को शिवपुर महंत कुलाईजोत मंदिर, चमरूपुर गाँव, बालरामपुर जिला, उत्तर प्रदेश में हुआ।
पूजन से गाँव की आर्थिक स्थिति पर क्या असर पड़ा?
स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों को लगभग 1.2 लाख रुपये की आय हुई। यह आय आगे के शैक्षणिक और सामाजिक परियोजनाओं में उपयोग की जाएगी, विशेषकर महिला साक्षरता कार्यक्रम में।
भविष्य में इस पूजा को कैसे और बड़ा बनाने की योजना है?
आगामी वर्ष में आयोजन को 7,000 श्रद्धालुओं तक बढ़ाने की योजना है, साथ ही डिजिटल लाइवस्ट्रीमिंग और अतिरिक्त जल‑सुविधा जैसी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाया जाएगा।
शिक्षा क्षेत्र में इस कार्यक्रम से क्या लाभ हुआ?
पूजन के दौरान महिला साक्षरता पर विशेष चर्चा हुई, जिससे पी.एस. चमरूपुर स्कूल और स्थानीय NGOs महिला शिक्षा के लिए अतिरिक्त फंड संग्रहीत करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। लक्ष्य अगले पाँच वर्षों में महिला साक्षरता दर को 30 % तक ले जाना है।
Arundhati Barman Roy
शिवपुर महंत कुलाईजोत में आयोजित लाक्ष्मी पूजन का विवरण पढ़कर मेरा हृदय भर आया। यह देख कर खुशी हुई कि पाँच हज़ार श्रद्धालु एक साथ आए और अपने संस्कृति की सराहना कर रहे हैं। ऐसी सामुदायिक इवेंट से गाँव की सामाजिक बंधन मजबूत होती है। कार्यक्रम में मुखिया महेंद्र सिंह की पहल को सराहा जाना चाहिए। उन्होंने आर्थिक मदद के साथ साथ शिक्षा पर भी जोर दिया, जो बेहद प्रशंसनीय है। महिला साक्षरता दर को 30% तक ले जाने की योजना वास्तव में प्रेरणादायक है। स्थानीय कारीगरों को मिलने वाला 1.2 लाख रुपये का आय उनके सतत विकास में सहायक होगा। पूजन के दौरान महिलाओं ने अधिकारों पर जागरूकता सत्र सुना, यह कदम वाकई में सराहनीय है। मैं आशा करता हूँ कि अगली बार डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए दूर‑दराज के लोग भी इसमें भाग ले सकेंगे। जल‑सुविधा और सड़कों की मरम्मत की योजना भी दर्शाती है कि प्रशासन संवेदनशील है। इतिहास में इस मंदिर का महत्व 19वीं सदी से जुड़ा है, जो इसे सांस्कृतिक धरोहर बनाता है। दी गई जानकारी में उल्लेखित आँकड़े दर्शाते हैं कि गाँव की जनसंख्या लगभग 5,000 है और साक्षरता दर अभी 50% के आसपास है। यह आँकड़ा दर्शाता है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। स्थानीय NGOs और बालकृष्ण मिशन के सहयोग से विकास कार्य तेज़ हो सकते हैं। समग्र रूप से यह आयोजन आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक बदलाव का catalyst है। अंत में, मैं सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद देता हूँ और भविष्य में और भी बड़े कार्यक्रमों की कामना करता हूँ।