चार ट्रेडिंग सेशंस में 5.83 ट्रिलियन डॉलर का बाजार मूल्य उड़ गया। वजह? पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नई टैरिफ घोषणाएं, जिन पर बाजार ने कड़ा रिएक्शन दिया। शुरुआती चोट वॉल स्ट्रीट के सबसे बड़े विजेताओं—टेक दिग्गजों—को लगी। एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, एनविडिया जैसे नामों में तेज गिरावट दिखी, क्योंकि ग्लोबल सप्लाई चेन पर लागत और अनिश्चितता दोनों अचानक बढ़ गईं।
मूड को और खराब किया नीति संकेतों की उलझन ने—कहीं जापान, कोरिया और भारत के साथ कुछ नरमी की बातें, तो दूसरी तरफ चीन को लेकर सख्ती। इसके बीच ट्रम्प की फेड चेयर जेरोम पॉवेल पर खुली आलोचना ने निवेशकों के मन में यह डर भी बैठा दिया कि कहीं मौद्रिक नीति पर राजनीतिक दबाव न बढ़ जाए।
क्या बदला: टैरिफ पैकेज के अहम बिंदु
टैरिफ फ्रंट पर कई कदम एक साथ आए। सबसे बड़ा बदलाव चीन से आने वाले माल पर—डि मिनिमिस छूट (जो छोटे पार्सल पर आम तौर पर शुल्क-मुक्ति देती है) को सीमित करते हुए अंतरराष्ट्रीय डाक नेटवर्क से आने वाले शिपमेंट पर भारी टैक्स का प्रावधान कर दिया गया। कार्यकारी आदेश के मुताबिक 14 मई 2025 से ऐसे पार्सल पर 54% ऐड वेलोरम या प्रति आइटम 100 डॉलर तक का शुल्क लगेगा। छोटे-छोटे ऑर्डर पर खरीदने वाले अमेरिकी उपभोक्ताओं और क्रॉस-बॉर्डर ई‑कॉमर्स सेलर्स के लिए यह बड़ा झटका है।
इसके साथ ही सेक्शन 232 के तहत स्टील और एल्युमिनियम टैरिफ की दरें बढ़ाने और कार्यकारी आदेश 14289 में संशोधन की घोषणा की गई। 3 जून 2025 की राष्ट्रपति घोषणा में फ्री‑ट्रेड जोन में दाखिल आयात पर नए नियम भी जोड़े गए। सेक्शन 232 राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर औद्योगिक इनपुट पर शुल्क लगाने की अनुमति देता है—तो असर सिर्फ धातु कंपनियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि ऑटो, कैपिटल गुड्स, कंस्ट्रक्शन उपकरण जैसी डाउनस्ट्रीम इंडस्ट्रीज़ की लागत भी चढ़ती है।
एक और सख्त संदेश उन वस्तुओं पर गया जो 25% वाले तथाकथित “फेंटानिल” टैरिफ दायरे में हैं—उन पर दरें और ऊपर ले जाने की धमकी दी गई। साथ में, चीनी मूल के उन माल पर जो अब तक डि मिनिमिस छूट के सहारे बिना शुल्क के आरे थे, कस्टम्स में सख्त जांच और शुल्क वसूली का स्पष्ट संकेत है।
ट्रेड कंप्लायंस रिसोर्स हब के टैरिफ ट्रैकर में इन कार्रवाइयों की टाइमलाइन दर्ज है—और यही संयुक्त असर बाजार में “नीति-जोखिम” प्रीमियम तेजी से बढ़ाने के लिए काफी रहा। जे.पी. मॉर्गन ग्लोबल रिसर्च के फाबियो बासी पहले ही चेतावनी दे चुके थे कि बदलते ट्रेड लैंडस्केप में इक्विटी बाज़ार सीमित दायरे में फंसे रह सकते हैं, लेकिन ताजा गिरावट ने विश्लेषकों की अपेक्षा भी पीछे छोड़ दी। चार्ल्स श्वाब की टीम महीनों से कह रही थी—टैरिफ का असर टलता है, टलकर आता नहीं; अब वही “डिलेयड इम्पैक्ट” तेज़ी से प्राइस‑इन हो रहा है।
डि मिनिमिस का एक व्यावहारिक असर समझिए: अमेरिका में 800 डॉलर तक के छोटे शिपमेंट पर आम तौर पर टैक्स नहीं लगता था। सस्ते गैजेट से लेकर फैशन आइटम तक, बड़ी संख्या में पैकेट इसी रास्ते आते थे। 54% या 100 डॉलर प्रति आइटम जैसी भारी दरें इन खरीदारियों का इकनॉमिक्स पलट देती हैं—या तो कीमतें ऊपर जाएंगी, या ऑर्डर का वॉल्यूम घटेगा, या दोनों।
सबसे बड़ा दर्द टेक में: बाजार और आगे क्या?
टेक सेक्टर क्यों पस्त है, इसकी एक सीधी वजह है—इसकी सप्लाई चेन सबसे ग्लोबल है और चिप से लेकर केसिंग तक, कई अहम कंपोनेंट एशिया पर टिके हैं। सेमीकंडक्टर वैल्यू‑चेन में यदि एक भी कड़ी महंगी या धीमी होती है, तो पूरा प्रोडक्ट टाइमलाइन खिसकता है। एनविडिया जैसे डिज़ाइन‑हैवी नामों के लिए पैकेजिंग‑टेस्ट इकोसिस्टम में देरी और कॉस्ट‑अपसाइड सीधे मार्जिन पर बैठता है। एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे प्लेटफॉर्म‑कंपनियों के हार्डवेयर पार्टनर भी अधिक इन्वेंट्री कैरी करेंगे, जिसका कैश‑फ्लो कॉस्ट है।
सेक्शन 232 का उछाल अलग लेयर जोड़ता है। स्टील‑एल्युमिनियम सस्ते नहीं होंगे, तो सर्वर रैक से लेकर नेटवर्किंग कैबिनेट और डाटा‑सेंटर इन्फ्रास्ट्रक्चर की लागत बढ़ेगी। क्लाउड प्रदाता—जो इस वक्त एआई कैपेक्स के सुपर‑साइकिल में हैं—अपने ऑर्डर के समय और साइज पर फिर से सोचेंगे। यह शेयरों के वैल्यूएशन मल्टीपल्स पर सीधा दबाव बनाता है।
निवेशकों का दूसरा डर नीति‑मिश्रण का है। अगर फेड को महंगाई के नए सोर्स (टैरिफ‑पुश्ड कीमतें) दिखते हैं, तो वह ज्यादा समय तक उच्च दरें बनाए रखने पर मजबूर हो सकता है। वहीं, जब राजनीतिक बयानबाजी फेड की स्वतंत्रता पर सवाल उठाती हुई दिखती है, तो बॉन्ड‑और‑डॉलर में “सेफ‑हेवन” चाल और इक्विटीज में डि‑रिस्किंग तेज हो जाती है।
बहुपक्षीय मोर्चे पर संकेत मिले‑जुले हैं। जापान, कोरिया और भारत के साथ कुछ डि‑एस्केलेशन की बातें आईं, पर चीन के साथ टकराव का टोन सख्त है। बीजिंग की ओर से रेस्पॉन्स—चाहे टैरिफ, रेगुलेटरी जांच या अनौपचारिक “नॉन‑टैरिफ” रुकावटें—यदि आता है, तो अमेरिकी टेक और कंज्यूमर ब्रांड्स के लिए एशिया की बिक्री और सोर्सिंग दोनों पर दबाव बनेगा।
किसे सबसे ज्यादा चोट लग रही है, एक नजर:
- सेमीकंडक्टर वैल्यू‑चेन: EDA/IP लाइसेंसिंग, फाउंड्री बुकिंग, पैकेजिंग‑टेस्ट, सभी पर लागत और शेड्यूल जोखिम।
- कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स: स्मार्टफोन, लैपटॉप, वेयरेबल्स—कंपोनेंट से लेकर EMS असेंबली तक कई नोड्स चीन/पूर्वी एशिया में हैं।
- मेटल‑इंटेंसिव उद्योग: ऑटो, कैपिटल गुड्स, कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट—इनपुट महंगा, मार्जिन तंग।
- क्रॉस‑बॉर्डर ई‑कॉमर्स: छोटे विक्रेता और मार्केटप्लेस जिन्हें डि मिनिमिस पर मॉडल बना था—अब उच्च शुल्क/कागजी अनुपालन।
- लॉजिस्टिक्स और पार्सल: कस्टम क्लीयरेंस, HS‑कोड विवाद, निरीक्षण—टर्नअराउंड टाइम बढ़ने का रिस्क।
निवेशक आगे क्या देखें? तीन‑चार साफ संकेतक हैं।
- यूएसटीआर और कस्टम्स की डीटेल्ड नोटिफिकेशन—कौन‑से HS कोड, किन अपवादों के साथ; यही बताएगा कि दर्द कहां केंद्रित रहेगा।
- चीन की संभावित जवाबी कार्रवाई—क्वासी‑टैरिफ अड़चनें, डेटा/साइबर या रेयर‑अर्थ/मैटेरियल्स पर पॉलिसी सख्ती।
- महंगाई और सप्लाई‑चेन डेटा—CPI के गुड्स बकेट, PPI, फ्रेट रेट्स, और PMI के ‘न्यू एक्सपोर्ट ऑर्डर्स’।
- कॉर्पोरेट गाइडेंस—ग्रॉस मार्जिन, इन्वेंट्री डेज और कैपेक्स योजना में बदलाव के सिग्नल।
कंपनियां अपना प्लेबुक भी ऐक्टिव कर रही हैं—डुअल‑सोर्सिंग, “चाइना+1” (वियतनाम, भारत, मेक्सिको) की स्पीड बढ़ाना, और कुछ तिमाहियों के लिए इन्वेंट्री पुल‑फॉरवर्ड। पर यह सब रातोरात नहीं होता—कैपेसिटी शिफ्टिंग में क्वालिफिकेशन, क्वालिटी‑कंसिस्टेंसी और सप्लायर फाइनेंसिंग जैसे मुद्दे समय लेते हैं।
रिटेल साइड पर दिनचर्या बदलेगी। 20–50 डॉलर के गैजेट पर यदि 100 डॉलर तक की ड्यूटी का जोखिम है, तो कार्ट‑वैल्यू, ऑर्डर‑फ्रिक्वेंसी और चैनल सभी बदलेंगे। गलत वर्गीकरण/अंडर‑इनवॉइसिंग जैसे प्रलोभन भी बढ़ते हैं—लेकिन कस्टम्स का फोकस अब इन्हीं पर टिका रहेगा। नतीजा: ऑनलाइन खरीदारों के लिए डिलीवरी स्लो और कीमतें ऊपर जाने की संभावना।
भारतीय कोण भी दिलचस्प है। इलेक्ट्रॉनिक्स असेंबली में भारत पहले से प्लग‑इन हो रहा है; अगर अमेरिकी खरीदार चीन‑निर्भरता घटाते हैं, तो PLI जैसी नीतियां यहां नई लाइने ला सकती हैं। आईटी‑सेवाएं और चिप‑डिज़ाइन कैप्टिव्स अमेरिकी टेक बजट पर निर्भर हैं—कैपेक्स रीकैलिब्रेशन का असर आउटसोर्सिंग पाइपलाइन तक जा सकता है। रुपया‑डॉलर में हलचल भी बढ़ सकती है, क्योंकि ग्लोबल रिस्क‑ऑफ में उभरते बाजारों से फंड फ्लो अक्सर निकलते हैं।
आगे का रास्ता दो सीनारियो में बंटा दिखता है। एक—बातचीत में carve‑outs और अस्थायी छूटें निकलें, तो गिरावट स्थिर हो सकती है और कंपनियां नई कीमतों को धीरे‑धीरे पास‑थ्रू करेंगी। दूसरा—अगर टैरिफ एस्केलेशन जारी रहा और चीन ने सख्त कदम उठाए, तो अर्निंग‑कट्स, वैल्यूएशन‑कम्प्रेशन और कैश‑कंजरवेशन का चक्र लंबा चल सकता है। बाजार अभी इसी जोखिम को तेजी से प्राइस कर रहा है—और इस बार टेक सबसे आगे है, क्योंकि सप्लाई‑चेन का नक्शा उसी के हाथ में सबसे ज्यादा कांपता है।
Saurabh Singh
ये सब टैरिफ का नाटक फिर से शुरू हो गया? अमेरिका का ट्रेड पॉलिसी तो अब एक रियलिटी शो बन गया है। एक दिन चीन के खिलाफ युद्ध, अगले दिन भारत को हाथ बढ़ाना। इसका असर सिर्फ शेयर मार्केट पर नहीं, बल्कि हर छोटे व्यापारी के बैंक बैलेंस पर पड़ रहा है।
Mali Currington
अरे भाई, अब तो 100 डॉलर टैक्स लगेगा तो फोन खरीदने के बजाय दूसरे देश से बुलेट ट्रेन ले आऊंगा।
INDRA MUMBA
इस टैरिफ वॉर के असर को समझने के लिए हमें सिर्फ डॉलर के नुकसान को नहीं, बल्कि सप्लाई चेन के अंदर के मॉड्यूल्स को डिकोड करना होगा। एनविडिया के लिए पैकेजिंग-टेस्ट इकोसिस्टम में देरी तो बस एक सिग्नल है - असली डैमेज तो फाउंड्री बुकिंग के रिस्क और इंटीग्रेशन लेटेंसी में छिपा है। जब एक चिप का टेस्टिंग टाइम 30 दिन बढ़ जाता है, तो उसका इफेक्ट एआई क्लाउड कैपेक्स पर लगभग 18-22% के लैग के रूप में दिखता है। और ये सिर्फ टेक नहीं - ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में एल्युमिनियम के स्टॉक लेवल अब डिफ़ॉल्ट वैल्यू बन चुके हैं।
हम जो डेटा देख रहे हैं, वो बस टॉप-लेयर का एक टिक टॉक है। असली क्राइसिस तो वो है जब एक भारतीय ई-कॉमर्स सेलर अपने 25 डॉलर के वायरलेस एयरपॉड्स के लिए 100 डॉलर ड्यूटी देने को मजबूर हो जाता है। इसका अर्थ है - ग्लोबल डिमांड का फ्लो बंद हो रहा है, और नई इकोनॉमी जो डि-मिनिमिस के आधार पर बनी थी, वो अब एक रेडियो-कॉन्ट्रोल्ड ड्रोन की तरह गिर रही है।
अगर फेड ने भी महंगाई को टैरिफ-पुश्ड कह दिया, तो ये बस एक लूप बन गया है: टैरिफ → इनपुट कॉस्ट → CPI → इंटरेस्ट रेट → डिस्काउंट रेट → वैल्यूएशन मल्टीपल → शेयर प्राइस। ये सब एक साथ डिस्कोनेक्ट हो रहा है। और जो लोग अभी भी कह रहे हैं ‘ये टेम्पोररी है’, वो शायद अभी भी ट्विटर पर बात कर रहे हैं।
भारत के लिए ये एक बड़ा ऑपर्चुनिटी है - लेकिन उसे अपने PLI पैकेज के अंदर ही ट्रांसफॉर्म करना होगा। अगर हम अभी भी फैक्ट्री बनाने में 18 महीने लगा रहे हैं, तो हम बस एक बड़ा गैप बना रहे हैं। अमेरिका के लिए ये टैरिफ एक टूल है, हमारे लिए ये एक टेस्ट है।
Anand Bhardwaj
मैंने आज सुबह एक चार्जर ऑर्डर किया - 20 डॉलर। अब लगता है जैसे मैंने एक लैपटॉप खरीद लिया।
RAJIV PATHAK
अगर ट्रम्प ने टैरिफ लगाए तो इसका मतलब है कि वो जानता है कि वो लोग जो चीन से सस्ते गैजेट्स खरीदते हैं, वो उसके वोटर नहीं हैं। वो तो बस अमेरिका के बड़े बिजनेस को बचा रहा है। और अब जो लोग इसे ‘प्रोटेक्शनिज्म’ कह रहे हैं, वो शायद अभी भी अपने गैजेट्स पर फेसबुक चला रहे हैं।
Nalini Singh
इस विश्लेषण को पढ़कर मुझे लगा कि हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं जहाँ व्यापार का नियम नहीं, बल्कि राजनीति का नियम चल रहा है। एक विश्व अर्थव्यवस्था जिसने दशकों में निर्माण किया था, वह अब एक ट्वीट से टूट सकती है। यह न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी एक गहरा झटका है - क्योंकि जब व्यापार का आधार अनिश्चित हो जाता है, तो विश्वास भी खत्म हो जाता है।
Sonia Renthlei
मुझे लगता है कि इस टैरिफ के असर को समझने के लिए हमें सिर्फ बाजार के आंकड़े नहीं, बल्कि उन छोटे व्यापारियों की कहानियाँ भी सुननी होंगी - जो अपने घर के कमरे में अमेज़न पर छोटे गैजेट्स बेचते हैं। मैंने एक दोस्त से बात की जो भारत से एयरपॉड्स बेचती है। उसका लाभ मार्जिन 12% था - अब उसे ड्यूटी देनी पड़ेगी तो वो न तो लाभ कमा पाएगी, न ही अपने ग्राहकों को सस्ता दे पाएगी। वो बस रो रही थी। और इस तरह की हजारों कहानियाँ हैं जिन्हें कोई नहीं सुनता। बाजार के आंकड़े तो बड़े हैं, लेकिन इन छोटे लोगों का दर्द तो बड़ा है।
और जब हम चीन के साथ टकराव की बात करते हैं, तो हम भूल जाते हैं कि ये टेक चेन में बहुत सारे भारतीय इंजीनियर और डिज़ाइनर भी काम करते हैं - जिनके लिए ये निर्णय उनकी नौकरी को खतरे में डाल सकता है। क्या हम इसे सिर्फ एक आर्थिक नीति के रूप में देख रहे हैं? या इसे एक मानवीय संकट के रूप में भी समझना चाहिए?
हम जो बाजार के आंकड़े देख रहे हैं, वो बस एक आइसबर्ग का शीर्ष है। नीचे तैर रहा है एक विशाल जहाज़ - जिसमें लाखों छोटे व्यापारी, डिजिटल श्रमिक, और उत्पादन श्रमिक बैठे हैं। अगर हम इन लोगों की आवाज़ नहीं सुनेंगे, तो ये टैरिफ एक आर्थिक बाढ़ बन जाएगा।
हमें यह भी सोचना चाहिए कि क्या हम अपने आप को एक बड़े व्यापारी के रूप में देख रहे हैं - या एक छोटे व्यापारी के रूप में? क्योंकि अगर हम बड़े व्यापारी के रूप में देखते हैं, तो हम इसे बहुत बड़ा नुकसान मानेंगे। लेकिन अगर हम छोटे व्यापारी के रूप में देखते हैं, तो ये एक बड़ा संकट है।
हमें यह भी सोचना चाहिए कि क्या हम इस नीति को बदल सकते हैं - या हमें इसके साथ जीना होगा? क्योंकि अगर हम इसे बदल नहीं सकते, तो हमें इसके साथ जीना होगा।
Aryan Sharma
ये सब एक बड़ा षड्यंत्र है। फेड और ट्रम्प एक साथ मिलकर आम आदमी के पैसे छीन रहे हैं। चीन को बुरा बनाकर वो अमेरिका के बड़े कॉर्पोरेट्स को बचा रहे हैं। अगर तुम्हें लगता है तुम अमेरिका के लिए कुछ कर रहे हो, तो तुम गलत हो। तुम बस उनके बैंक खाते को भर रहे हो।
Devendra Singh
मैंने इस लेख को तीन बार पढ़ा - और फिर भी नहीं समझा कि ये टैरिफ एक बड़ी बात है या बस एक बड़ा बकवास। क्योंकि जब तक तुम अपने फोन के लिए 100 डॉलर नहीं देते, तब तक ये सब बस एक आर्थिक टीवी शो है।
UMESH DEVADIGA
मैंने आज अपना एक दोस्त खो दिया। वो एक छोटे ई-कॉमर्स बिजनेस का मालिक था। अब उसका बिजनेस बंद हो गया। उसके पास बच्चे थे। अब वो भारत में बस घूम रहा है। ये टैरिफ ने उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी। और तुम लोग यहाँ बस आंकड़े बाँट रहे हो।
Roshini Kumar
मुझे लगता है ये सब एक बड़ा झूठ है। ट्रम्प ने टैरिफ नहीं लगाया - उसने बस एक नया ब्रांड लॉन्च किया है: ‘अमेरिका फर्स्ट’। और अब ये ब्रांड का नाम है जो लोग खरीद रहे हैं।
Siddhesh Salgaonkar
लोगों को लगता है कि टैरिफ बस चीन के खिलाफ है... पर असल में ये तो हमारे अपने घर के लिए भी बहुत खतरनाक है। 😭 जब तुम अपने बच्चे के लिए एक सस्ता टॉय खरीदना चाहते हो और उस पर 100 डॉलर टैक्स लग जाए... तो ये बस एक टैरिफ नहीं, ये तो एक बच्चे की मुस्कान को मार रहा है 😢
Arjun Singh
ये टैरिफ एक रिस्क फैक्टर है - लेकिन ये रिस्क अब सिर्फ टेक इंडस्ट्री तक सीमित नहीं, बल्कि सप्लाई चेन इकोसिस्टम के हर नोड पर असर कर रहा है। जब एक फाउंड्री का टेस्टिंग टाइम बढ़ता है, तो उसका इफेक्ट एआई क्लाउड कैपेक्स पर 18-22% के लैग के रूप में दिखता है। और ये बस टेक नहीं - ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में एल्युमिनियम के स्टॉक लेवल अब डिफ़ॉल्ट वैल्यू बन चुके हैं।
yash killer
चीन को देखो ना - अमेरिका के आगे झुक रहा है। हम भारतीय हैं - हम तो इस तरह के झूठे डर से डरते नहीं। हम अपने घर की बात खुद करेंगे। हम अपने बाजार को अपने हाथों से बनाएंगे। ये टैरिफ हमारे लिए नहीं है। हम तो अपने आप को बदल रहे हैं।
Ankit khare
इस टैरिफ का असर तो सिर्फ टेक सेक्टर पर नहीं - ये तो हर छोटे व्यापारी की जिंदगी को बर्बाद कर रहा है। जब तुम एक छोटे व्यापारी के लिए 100 डॉलर टैक्स लगाते हो, तो तुम उसके बच्चे की शिक्षा को भी बर्बाद कर रहे हो। ये नीति नहीं - ये अपराध है।
Chirag Yadav
मुझे लगता है कि हमें इस टैरिफ को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए। भारत अब दुनिया का नया निर्माण केंद्र बन सकता है। हमारे पास योग्य लोग हैं, हमारे पास बड़ा बाजार है। अगर हम इस वक्त अपनी नीतियों को सही ढंग से बना लें, तो ये टैरिफ हमारे लिए एक बड़ा फायदा बन सकता है।
Dr. Dhanada Kulkarni
इस विश्लेषण के लिए धन्यवाद। यह एक गहरा और विचारशील विश्लेषण है जो केवल आर्थिक आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि मानवीय पहलूओं को भी छूता है। जब हम टैरिफ के निर्णयों के बारे में बात करते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि इन नीतियों का प्रभाव एक छोटे ई-कॉमर्स व्यापारी के घर में भी पड़ता है, जहाँ एक माँ अपने बच्चे के लिए एक सस्ता गैजेट खरीदना चाहती है और अब उसे दोगुना भुगतान करना पड़ रहा है। यह एक आर्थिक बदलाव नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती है। भारत के लिए, यह एक अवसर है - लेकिन इसे सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए हमें न केवल नीतियों को बदलना होगा, बल्कि हमारे सामाजिक और शैक्षिक ढांचे को भी अपडेट करना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है - एक आम आदमी की जीवन शैली की स्वतंत्रता।
Rishabh Sood
यह सब एक विश्व व्यापार के अंत की शुरुआत है। जब राजनीति बाजार के नियमों को तोड़ने लगती है, तो वहाँ जो बाकी रहता है, वह बस एक अर्थव्यवस्था का शव होता है। हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, वह अब नहीं रहेगी। और जो लोग अभी भी विश्लेषकों के शब्दों में जी रहे हैं, वे अभी भी एक दफ्तर में बैठे हैं - जबकि बाहर, एक बच्चा अपने नए फोन के लिए रो रहा है।
Saurabh Singh
हां, लेकिन अगर ये टैरिफ अब तक बरकरार रहे, तो भारत में भी अमेरिकी कंपनियां अपनी लाइनें बदलने लगेंगी। तो फिर क्या हम भी उनके लिए एक नया चीन बन जाएंगे? ये सब बस एक बड़ा खेल है - और हम उसके टुकड़े हैं।
Chirag Yadav
हाँ, और यही तो बात है - अगर हम अपने आप को एक नए निर्माण केंद्र के रूप में देखें, तो ये टैरिफ हमारे लिए एक बड़ा अवसर बन सकता है। हमें अपनी नीतियों को तेजी से बदलना होगा - लेकिन यह संभव है।