दुर्गा पूजा – इतिहास, रीति‑रिवाज़ और आधुनिक उत्सव

जब बात दुर्गा पूजा, एक नौ‑दिन का हिन्दू त्यौहार है जिसमें देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, शरद ऋतु के अंत में सामाजिक एकता और उत्सव का जश्न मनाया जाता है. Also known as शिशिर अपराजिता, it आध्यात्मिक शक्ति और बुराई पर जीत का प्रतीक है, जिससे हर घर और पूरा शहर इस उत्सव को धूमधाम से सजाता है. इस परिचय में हम इस त्यौहार के मूल, उसके प्रमुख अनुष्ठान और आज के बदलते स्वरूप को समझेंगे, ताकि नीचे दिखाए गए लेखों को पढ़ते समय आपके मन में सही संदर्भ रहे।

दुर्गा पूजा का मुख्य आकर्षण पंडाल, अस्थायी मंडप होते हैं जिन्हें स्थानीय कलाकार और शिल्पकार पारंपरिक सामग्री या आधुनिक डिजाइन से सजाते हैं, जिससे देवी को एक राजसी घर मिलता है है। पंडाल का आकार, रंग‑रूप और प्रकाश व्यवस्था हर साल नई रचनात्मकता दिखाती है। साथ ही, आरती, एक संगीत‑संकल्पित अनुष्ठान है जिसमें दीपकों की रोशनी, मंत्र और गीतों के साथ देवी को सम्मानित किया जाता है दुर्गा पूजा की आत्मा को जीवित रखता है। आरती के दौरान बजते डाँडू, ढोलक और झांझर के स्वर सुनकर लोगों को आध्यात्मिक शांति और सामूहिक ऊर्जा अनुभव होती है। ये दो तत्व – पंडाल और आरती – मिलकर "दुर्गा पूजा में पंडाल सजावट शामिल है" और "आरती दुर्गा पूजा का मुख्य अनुष्ठान है" जैसे स्पष्ट संबंध स्थापित करते हैं।

रात्रि के साज‑सज्जा के बाद, अगले दिन का मुख्य कर्म अभिषेक, विचित्र औषधियों, फूलों और मिठाइयों से देवी को स्नान कराया जाता है, जिससे उसकी शक्ति और स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व होता है है। अभिषेक के दौरान शंख, अभंग, दालचीनी व अशोक के पत्तों का उपयोग किया जाता है, जो सभी को शुद्धि और समृद्धि का संदेश देते हैं। यह अनुष्ठान "अभिषेक देवी दुर्गा को सम्मानित करता है" का ठोस उदाहरण है। अभिषेक के बाद आमतौर पर विसर्जन होता है, जिसका मतलब है जल में देवी के स्वरूप को छोड़ देना, जिससे जल का शुद्धिकरण भी हो जाता है। इस प्रक्रिया में समुदाय के सभी सदस्य मिलकर पानी में फूल डालते हैं, जिससे सामाजिक जुड़ाव और प्रकृति के प्रति सम्मान भी बढ़ता है।

दुर्गा पूजा के प्रमुख अनुष्ठान और सामाजिक पहल

आजकल दुर्गा पूजा केवल धार्मिक समारोह नहीं रह गया; यह सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहल का भी केंद्र बन गया है। कई शहरों में निवासियों ने मिलकर शारीरिक स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्यक्रम आयोजित किए हैं। उदाहरण के तौर पर, पंडाल के आसपास पर्यावरण‑मित्र सामग्री का उपयोग, जैसे कि इको‑क्ले, सोया‑आधारित रंग और पुनर्नवीनीकरण बोर्ड, ने पर्यावरणीय प्रभाव को घटाया है। इसके अलावा, स्थानीय NGOs ने गाँव‑गाँव में स्वास्थ्य शिविर, रक्तदान और सामुदायिक भोजन का प्रबंध किया है, जिससे "दुर्गा पूजा सामाजिक एकता को बढ़ावा देती है" की भावना स्पष्ट रहती है।

दुर्गा पूजा का क्रमिक विस्तार कारीगरों को नई कला‑शैलियों को सीखने और बेचने के अवसर प्रदान करता है। पंडाल सजावट में डिजिटल लाइटिंग, प्रोजेक्शन मैपिंग और 3‑डी मॉडल का उपयोग अब आम हो रहा है, जिससे दर्शक कहर की अनुभूति कराते हैं। ये तकनीकी नवाचार "आधुनिक उत्सवों में परंपरा और प्रौद्योगिकी का संगम" सिद्ध होते हैं। साथ ही, स्थानीय व्यंजनों—जैसे कि खिचड़ी, पूरी, मीठाई—की बिक्री से छोटे व्यापारियों को आर्थिक लाभ मिलता है।

कुल मिलाकर, दुर्गा पूजा का हर तत्व—पंडाल, आरती, अभिषेक, सामाजिक पहल और तकनीकी नवाचार—परस्पर जुड़े हुए हैं। इस तालमेल से "दुर्गा पूजा आध्यात्मिक शक्ति और सामाजिक एकता का संगम बनता है" जैसी मर्त्बा स्थापित होती है। जब आप नीचे दी गई सूची पढ़ेंगे, तो आपको यह समझ में आएगा कि विभिन्न समाचार, कार्यक्रम और विश्लेषण कैसे इन सभी आयामों को प्रतिबिंबित करते हैं।

इन बिंदुओं को ध्यान में रखकर अब आगे के लेखों में आप दुर्गा पूजा से जुड़ी ताज़ा खबरें, कार्यक्रम विवरण और तैयारी के टिप्स पाएँगे—आपके लिए एक पूरी गाइड जैसा अनुभव होगा।

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Subhranshu Panda सितंबर 29 2025 17