मौद्रिक नीति: आसान भाषा में समझें क्या चल रहा है
जब हम "मौद्रिक नीति" की बात सुनते हैं तो अक्सर बैंक नोट, रेपो दर या महंगाई के शब्द दिमाग में आते हैं। असल में यह वह उपायों का समूह है जो भारत की सेंट्रल बैंकर—RBI—इकॉनमी को संतुलित रखने के लिए अपनाता है। अगर आप घर की बचत देख रहे हैं या लोन की किस्तों में उलझे हैं, तो मौद्रिक नीति का असर आपके रोज़मर्रा के फैसलों में झलकेगा। चलिए, इसे आसान शब्दों में तोड़‑फोड़ देते हैं।
RBI की तीन मुख्य टूल्स कौन‑सी हैं?
पहला है रिकॉर्ट रेट (repo rate)—ये वह ब्याज है जो RBI बैंकों को अस्थाई रूप से पैसे उधार देता है। जब RBI यह दर घटाता है, तो बैंकों को सस्ता पैसा मिलता है, और वो फिर आपको बैंकों के लोन और होम लोन पर कम ब्याज देते हैं। दूसरा है रिवर्स रेपो रेट—बैंक RBI को अपना अतिरिक्त पेसा दे सकते हैं, और इसे रखने पर भी ब्याज मिलता है। यह दर बढ़ाने से बैंकों के पास कम फ्रीफ्लो रहता है, इसलिए इकोनमी में पैसे की सप्लाई घटती है। तीसरा टूल है ओपन मार्केट ऑपरेशन्स (OMO)—RBI सेक्योरिटीज़ खरीदे या बेचे, जिससे बाजार में पैसे की टोटल संख्या को कंट्रोल किया जाता है।
इन टूल्स को मिलाकर RBI महंगाई को टारगेट (आमतौर पर 4%) के करीब लाने की कोशिश करता है, और साथ ही जॉब मार्केट, निवेश और एक्सपोर्ट‑इम्पोर्ट को भी सपोर्ट करता है। अगर महंगाई बढ़ती है, तो RBI रेपो रेट बढ़ा सकता है, जिससे क्रेडिट महंगा हो जाता है और खर्च कम। उल्टा, अगर आर्थिक गति धीमी पड़ती है, तो दर घटाकर खर्च को चालू किया जाता है।
आज की मौद्रिक नीति: क्या है नया?
2025 की शुरुआत में RBI ने रेपो रेट को 6.50% पर स्थिर रखा, जबकि महंगाई 5.2% पर खड़ी थी। इस कदम ने दो बातें साफ़ कर दीं: पहले, महंगाई को सतर्कता से देख रहे हैं; दूसरा, बाजार को अचानक सीधा‑से‑सीधा शॉक नहीं देना चाहते। साथ ही, RBI ने ग्रामीण बैंकों के लिए लिक्विडिटी सपोर्ट बढ़ाया, ताकि किसान लोन नहीं ठहरे। इस कदम से छोटे किसानों को फसल ऋण में मदद मिली और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनी।
एक ओर जहाँ बड़े कंपनियों को करज़े की दरें थोड़ी महँगी लग रही हैं, वहीं दूसरी ओर छोटे बचत खाते पर ब्याज थोड़ा बढ़ा दिया गया है। ऐसा इसलिए कि RBI दोनों तरफ़ से संतुलन बनाकर रोजगार और निवेश को प्रोत्साहित करना चाहता है। इस वजह से कई बड़े व्यापारियों ने अपनी उत्पादन क्षमता में थोड़ा इजाफ़ा किया, जबकि घर में खपत थोड़ा कम हुई।
अगर आप लोन लेने की सोच रहे हैं, तो इस बार डिफ़ॉल्ट लोन की दरें 8‑9% के बीच रहेंगी—पहले की तुलना में थोड़ा कम। लेकिन ध्यान रखें, दरें बदल सकती हैं अगर महंगाई आगे चलकर 6% से ऊपर पहुंच जाए। इसलिए लोन की अवधि और ब्याज दर दोनों को देखते हुए ही प्लान बनाएं।
अंत में, मौद्रिक नीति सिर्फ RBI का फैसला नहीं, बल्कि हर नागरिक का हिस्सा है। आपका खर्च, बचत और निवेश सीधे इस नीति से जुड़ा है। इसलिए, जब भी RBI की नई बायें (बजट) या दरों में बदलाव की खबर आए, तो एक बार झाँक लें—इससे आपके वित्तीय फैसले आसान हो जाएंगे।