संजय दत्त: बॉलीवुड के किंग पिन तक का सफर

क्या आपने कभी सोचा है कि संजय दत्त जैसे एक्टर का करियर कैसे बना? 1959 में मुंबई में जन्मे संजय ने 80 के दहाके से ही स्क्रीन पर धूम मचा दी। उनका पहला फ़िल्मी कदम जंग (1977) था, लेकिन असली पहचान 80‑90 के दशक में ‘फ़्लेम’ और ‘परिचय’ जैसी फ़िल्मों से मिली।

फ़िल्मी हिट्स और एंटीक पर्सनालिटी

संजय दत्त ने ‘अभिमान’, ‘दिल है कि मानता नहीं’, ‘कामोली’, ‘उड़ता पंजाब’, ‘बॉबिनी’ जैसी फ़िल्मों में अपने दमदार अंदाज़ से दर्शकों का दिल जीता। ‘कहानी जीवन की’ में उनका किकबैक्स वाला सीन आज भी लोगों के दिल में रहता है। उनके एक्शन फ़्लेम को ‘फिटनेस मॉडल’ कहा जाता था—अभी भी लोग जिम में उनके बॉडीबिल्डिंग मूव्स की नकल करते हैं।

अगर हम उनके म्यूजिक वीडियोज़ की बात करें, तो ‘तू चला तो आया’ और ‘हैप्पी न्यू इयर’ ने उन्हें एक सिंगर-एक्टर की पहचान दी। ये सब चीज़ें मिलकर उन्हें ‘किंग पिन’ टैग दी गई, जिसका मतलब है कि फिल्म में चाहे हीरो हो या एंटी‑हिरो, दत्त हमेशा स्क्रीन पर चमके।

विवाद और रीबाउंड

संजय दत्त की ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव रहे। 1993 में मुंबई में बम्बे ब्लास्टिंग केस में उनका नाम आया और जेल की सजा मिली। 1999 में जेल से रिहा होने के बाद भी उन्होंने फिल्मों में वापसी की, जिससे दर्शकों को सीख मिली कि एक बार गिरने के बाद फिर से उठना ही सच्चा हीरो बनाता है।

आजकल दत्त सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं। उनके इंस्टाग्राम पर फैंस को रोज़ नई फ़ोटो, फिटनेस टिप्स और अपनी फिल्म प्रोजेक्ट्स की झलक मिलती है। हाल ही में उनकी ‘बॉबिनी’ रिमेक के साथ नई रिलीज़ की खबरें ट्रेंड कर रही हैं, और लोग इंतजार कर रहे हैं कि वह फिर से बड़े स्क्रीन पर कैसे छाएंगे।

संक्षेप में, संजय दत्त ने अपने करियर में हिट फ़िल्में, विरोधाभासी जीवन और लगातार बदलाव के साथ एक अनोखा ब्रांड बनाया है। उनके फ़न फैक्ट्स—जैसे की ‘संदेह के बिना फिटनेस’ और ‘कॉफ़ी में शॉट’—हम्म... बस, यही बातें उन्हें एक असली किंग पिन बनाती हैं।

अगर आप संजय दत्त के बारे में और गहराई से जानना चाहते हैं, तो इस टैग पेज पर जुड़िए और उनके सबसे ताज़ा समाचार, लाइफ़स्टाइल टिप्स और फ़िल्मी रिव्यूज़ को फॉलो करें।

Baaghi 4 Review: टाइगर का धमाका, संजय दत्त का खौफ—एक्शन कमाल, कहानी डगमग

Baaghi 4 Review: टाइगर का धमाका, संजय दत्त का खौफ—एक्शन कमाल, कहानी डगमग

Baaghi 4 में टाइगर श्रॉफ अपनी पहचान वाले हाई-ऑक्टेन एक्शन में चमकते हैं और संजय दत्त खौफनाक विलेन बनकर परदे पर वजन बढ़ाते हैं। हरनाज़ संधू की शुरुआत आत्मविश्वासी है, लेकिन कहानी कॉमा, भ्रम और अधपकी मनोवैज्ञानिक परतों में फंसती दिखती है। एक्शन लाजवाब, मगर पटकथा और एडिटिंग फिल्म को बिखरा बनाती है। फ्रेंचाइज़ी के पिछले भागों से तुलना में असर सीमित रहता है।

Subhranshu Panda सितंबर 6 2025 0